ये काल है,कराल है, चन्द्र इसके भाल है
खोलदी जटा छटा तो, देख लो विशाल है,
नंदी के सवार नंदी, दौड़ता अपार पार
रोके कौन,टोके कौन, किसकी येे मजाल है ?
ये प्रलय सी चाल है, और गले में व्याल है
धरा गगन है डोलते, सुन के डमरू ताल है,
दिशा-दिगंत डोलते, गगन से देव, बोलते
ये सिद्ध है,ये रुद्र है, अरे यह तो “महाकाल” है..!!
Excellent Article. Thanks for sharing. I like to read…
Thanks